Monday, May 4, 2009

दर्द

जब भी कोई दर्द सीने से बाहर आया है
तुमने कांटो से उसे खूब सहलाया है

हमने जख्म सुखाने की दवा मांगी थी
तुमने जले में नमक झिरकाया है

11 comments:

RADIO SWARANGAN said...

अर्चना जी,


अच्‍छा लिख लेती हैं आप, मगर आपसे एक प्रार्थना है कि हिंदी भाषा में थोड़ा सा मन और लगाइए ।

श्यामल सुमन said...

दर्द को काँटे से सहलाने का खयाल अच्छा है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

main bhaayi mukesh ji kee baat se sahmat hun....

Unknown said...

aasha hai aage aur bhi achha padhne ko milega

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना अच्छी है,पर मुकेश पोपली जी की बात का मैं भी समर्थन करते हुए कहूँगा कि हिंदी भाषा में थोड़ा सा मन और लगाइए और प्रोफ़ाइल मे भी अपना नाम हिन्दी में लिखिए.....कभी कभी गंगवार की जगह गैंगवार लगने लगता है.......

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया!
बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने और इसी तरह लिखते रहिये !
मेरे इन ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
http://khanamasala.blogspot.com
http://urmi-z-unique.blogspot.com

उम्मीद said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

jeet said...

acha likha hai blog jagat mai aapka swagat hai

amlendu asthana said...

ख्याल को तो बस महसूस करें उसका प्रवाह या वेवलेंथ किसी भी भाषा से परे है. अर्चना जी के दर्द को तो बस महसूस करने की जरुरत है. अपने अच्छा लिखा है.

upendra said...

bahut hee sunder,