पत्थर फैकने वालो ......
मेरे कांच के घर पर
पत्थर फैकने वालो
अब तुम बुरे नहीं लगते......
तुम्हारे रंग बिरंगे पत्थर
हमें नज़र आते है
वो तुम्हारे आक्रोश को
मुझ तक लाते है........
जो तुम नहीं कह पाते हो
वो कह कर जाते है
पर मेरी पीठ सहलाने वालो
हमको गले लगाने वालो
जो आस्तीन मैं सांप लाते हो
उनसे हम रात को डर जाते है
अक्सर नीद से जग जाते है ..............
3 comments:
बढ़ियां प्रस्तुति ....
Bahut badhiya
बहुत उम्दा सृजन अर्चना जी
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